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Title:कैसे बोलें कि सब लोग हमें पसंद करें। रायपुर चातुर्मास प्रवचन 2022 - श्री ललितप्रभ जी।
Duration:01:30:32
Viewed:681,840
Published:04-09-2022
Source:Youtube

#Raipurchaturmas2022 #ShriLalitprabhji #KaisebolekisabloghamenpasandKaren #howtosaythateveryonelikesus #BolanekiKala #artoftalking #Raipurpravachan #Raipurchaturmaspravachan raipur pravachan mala video list- https://youtube.com/playlist?list=PLky5HeXucTzPqopR7TIc5NYaBVuO21IYk please share your friends. कृपया इस चैनल को सब्सक्राइब करें और बैल आइकन प्रेस करें ताकि हम राष्ट्रसंत श्री ललितप्रभ जी के सुनहरे अंदाज में दिल को छूने वाले लेक्चर आप तक पहुंचा सकें। धन्यवाद। प्रस्तुति : अंतर्राष्ट्रीय साधना तीर्थ, संबोधि धाम, जोधपुर (राजस्थान) ‘जीने की कला’ का पहला मंत्र है जब भी बोलें शिष्ट-शालीन, मिष्ठ- मीठा और ईष्ट यानि प्रियकर बोलें। हमारी वाणी हमारे व्यक्तित्व की पहचान होती है। आदमी की कुलीनता उसकी जमीन-जायजाद, धन-दौलत से नहीं, उसकी शालीनता से पहचानी जाती है। क्योंकि दुनिया का नियम है- जैसा तुम देते हो, लौटकर वही हर चीज तुम्हारे पास आती है। ये दुनिया एक ईको सिस्टम की तरह है, हम जैसा बोेलेंगे वापस वैसा ही हमें सुनने को मिलेगा। यदि तुम चाहते हो कि दुनियावाले तुम्हारा सम्मान करे तो जीवन में शिष्ट, मिष्ठ व ईष्ट वाणी के मंत्र को अपना लो। जिंदगी ना बन जाए, बला उससे पहले जीवन जीने की कला। अगर आदमी जीवन जीने की कला सीख लेता है तो उसका घर ही स्वर्ग बन जाता है। उसकी जिंदगी जन्नत बन जाती है, उसका मन-मस्तिष्क हमेशा आनंद से भरा रहता है, वो जहां रहता है, जिस मुकाम पर रहता है उसकी जिंदगी हर पल-हर क्षण प्रेम, आनंद, शांति, माधुर्य और विकास से भरी रहती है। जिंदगी को स्वर्गनुमा बनाने के लिए कोई बड़ी कोठी की जरूरत नहीं होती, जिंदगी को प्रेम और आनंद से भरने के लिए महंगे गहनों-आभूषणों की जरूरत नहीं होती, जिंदगी में माधुर्य घोलने के लिए घर में महंगे फर्निचरों की जरूरत नहीं होती। जिंदगी को स्वर्गनुमा बनाने के लिए जिंदगी जीने की कला आनी चाहिए। जीने की कला का पहला संसाधन है, हमारी वाणी। क्योंकि यही वाणी है जो हमारे संबंधों जोड़ती है और हमारे संबंधों को तोड़ती भी है। हमारे पूरे शरीर में अगर सबसे अच्छा अंग है तो वह हमारी जबान है। यही जबान है जो गीत गाती है, भजन गाती है, रिश्तों को बनाती है। यही जबान है जो प्रेम, माधुर्य और मिठास को घोलती है। सोचें कि हमारे पूरे शरीर का सबसे बुरा अंग कौन सा है! तो उत्तर मिलेगा- हमारी यही जबान। यही जबान है जो रिश्तों को तोड़ती है। वचन शुद्धि जब तक नहीं होगी तब तक आदमी के जीवन में न प्रेम होगा न शांति होगी। जरूरी है आदमी वाणी को ठीक करे। क्योंकि पानी अगर बिगड़ा तो विनाश होता है, और वाणी अगर बिगड़ गई तो सर्वनाश होता है। इस दुनिया में जब-जब भी मानवीय चोटें पहुंची है, जब-जब भी इंसानियत में दूरियां बढ़ी हैं, तब उसका कारण कहीं न कहीं हमारी अहंकार भरी भाषा रही है। जो लोग नरम, मीठी जबान के होते हैं, वो जिंदगीभर दूसरों के दिलों में राज किया करते हैं। जो लोग हमेशा टेढ़ा, उल्टा-सीधा बोलते हैं, सामने वाले का उपहास करते हैं, वे लोग बहुत धीरे दिल में उतरते हैं और बहुत जल्दी वापस बाहर निकल जाया करते हैं। यदि अपने कानों से अच्छे बोल सुनना चाहते हो तो अपनी जुबान से मीठे और प्रियकर बोल बोलो। पाॅजीटिव बोलोगे तो पाॅजीटिव परिणाम मिलेगा, निगेटिव बोलोगे तो निगेटिव परिणाम मिलेगा। पहले तौलें, उसके बाद अपनी जबान खोलें जिंदगीभर याद रखना, मां के पेट से निकला हुआ बच्चा, कमान से छूटा हुआ तीर, पिस्तौल से छूटी हुई गोली जैसे वापस लौटकर नहीं आ सकते, वैसे ही मुंह से बोले हुए शब्द कभी वापस लौटकर भीतर नहीं जा सकते। इसीलिए अपने जीवन में एक बात का पहला विवेक रखें कि हम कैसे बोलें कि हमें सब लोग पसंद करें। जब भी बोलें, पहले तौलें, उसके बाद अपनी जबान को खोलें। जहां मान-सम्मान, कद्र मिलती है, आदमी वहां बार-बार दौड़कर आता है। इसीलिए हमेशा मान-सम्मान, इज्जत की भाषा बोलो। आज से अपने जीवन का एक नियम बना लो- हम ऐसी भाषा नहीं बोलेंगे जो हमें किसी के दिल से उतारे। हमारी भाषा शिष्ट और मिष्ठ हो। भगवान द्वारा दी गई पांच समितियों में सबसे महान समिति है- भाषा समिति। जिसका अर्थ होता है, विवेकपूर्वक बोलना। मौन रहना सरल है लेकिन विवेकपूर्वक बोलना बहुत कठिन है। मौन रहने के लिए आदमी को एक पल चुप रहना पड़ता है, पर विवेकपूर्वक बोलने के लिए आदमी को हर पल सजग रहना पड़ता है। बोलना अगर चांदी है तो चुप रहना सोना है। सुप्रभातम् में छिपी हैं पांच मंगलकामनाएं प्रातःकाल एक-दूसरे को सुप्रभातम् कहें। सुप्रभातम् इस एक चमत्कारी शब्द में पांच-पांच मंगलकामनाएं छिपी हुईं हैं। सु अर्थात् जीवन हमेशा सुंदर हो, प्र यानि जीवन हमेशा प्रसन्नता से पूर्ण हो, भा यानि जीवन हमेशा भाग्यशाली हो, त यानि जीवन तनाव रहित हो और म यानि जीवन मंगलमय हो। हमारी भारतीय संस्कृति में सर्वे भवन्तु सुखिनः की बात कही गई है, जब आप भगवान से कहते हैं कि हे भगवान मुझे सुख दे तब भगवान मौन रहते हैं और जब आप कहते हैं कि हे भगवान सबको सुख दे तो सबसे पहले वे आपकी सुनते हैं। प्लीज, थैंक्यू, साॅरी इन शब्दों का देखें परिणाम स्ंतप्रवर ने जीवन व्यवहार में प्रतिदिन अपने बोलचाल में प्लीज, थैंक्यू, आई एम साॅरी इन शब्दों को शामिल करने की प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि इन तीन शब्दों को अपनी भाषा में एक दिन प्रयोग करके देख लो, तुम्हें इसका तुरंत परिणाम मिल जाएगा। वाणी संयम के पांच मंत्र देते हुए कहा कि जब भी बोलें आपकी मुखमुद्रा मुस्कान भरी हो, जब भी किसी से मिलो, बात शुरू करने से पहले दोनों हाथों से प्रणाम जरूर करो, जब भी बोलो विनम्रता से बोलो, वही बात बोलों जिससे सकारात्मक परिणाम मिले, अपनी भाषा-शब्दशैली में विवेक रखो, अपशब्दों का प्रयोग कदापि न करो, बोलचाल में दौरान किसी के अप्रियकर शब्दों को गांठ बांध कर न रखो।



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